Sketch 026

© Virender Rathore

नींदें

ये जो सो जाती हो दिन को मेरे कांधे पे रख कर सर,
कौन है जिसने रातों की नींदें उड़ा रखी है? - वीर

Sketch 025

© Virender Rathore

Different

"I'm different". Said all of them in unison - Vir

उसूल

हौंसला रख ऐ मंज़िल, मिलूंगा ज़रूर,
उसूलों पे चला हूं, थोड़ा वक्त लगेगा। - वीर

Sketch 023

© Virender Rathore

बहाना

सख्त जान हो, रोती नहीं तुम,
गले लगाने का ये बहाना भी गया। - वीर

Sketch 022

© Virender Rathore

Sketch 021

© Virender Rathore

रिश्ता

जाते जाते यूँ पलट कर देखना,
रिश्ता टूटने नहीं देता। - वीर

Sketch 020

© Virender Rathore

Sketch 019

© Virender Rathore

Sketch 018

© Virender Rathore

Sketch 017

© Virender Rathore

उम्मीद

उम्मीद कायम है तेरी अंगडाईयों से,
शायद इस दफै गले लगाने बुलाया हो। - वीर

Sketch 016

© Virender Rathore

आवाज़

बढा दी है आवाज़ लोगों ने,
रात के भजन की, दिन के अज़ान की;
या तो होड़ है,
कि पहले तू किस को चुनता है;
या शायद मान बैठे हैं सब,
कि तू कुछ ऊंचा सुनता है।
- वीर

Sketch 015

© Virender Rathore

Sketch 014

© Virender Rathore

Sketch 013

© Virender Rathore

इंसान

This is an excerpt from few lines that I had written hearing about Aylan Kurdi. A three-year-old Syrian boy who drowned on 2 September 2015 in the Mediterranean Sea.

दौड़ते हैं सब मंदिर की ओर, मस्जिद की ओर,
ख़ुदा मिला नहीं, भगवान दिखा नहीं;
तारीफ़ की बहुत उसकी, लगा भोंपू बजा घंटी,
दिल गला नहीं, दामन भरा नहीं;
लड़ लिये उसके वकील बन,
सज़ा सब को मिली, उसको सज़ा नहीं;
गर वो तुम में है, मुझ में है,
फ़िर क्यों कातिल तुम बने मैं बना, ख़ुदा नहीं?
जो सागर किनारे मर गया,
वो बच्चा तुम्हारा था, मेरा था;
क्युं दिल नहीं टूटा, ज़मीर जगा नहीं?
शैतान हम में था आईना बता देगा,
अल्लाह मर गया, ईश्वर बचा नहीं;
सच है उसे बनाया हमने मतलब के लिए,
शायद उसे भी पता हो, उससे बड़ा धंधा नहीं;
बांट दी धरा, पशु, पवन, नीर,
बन गए पंडित, मौला,
लगे सब अपना वज़ूद बनाने,
पर बने कैसे वीर,
जब इंसान ही बना नहीं।
- वीर

Sketch 012

© Virender Rathore

Sketch 011

© Virender Rathore